नाम उसका मेरे होंटों ने लिया है शायद,
ज़ख्मे दिल फिर से मेरा बूल उठा है शायद ,
काबिले फहम नही सिलसिला नाज़ ओ नियाज़ ,
खुद मोहबत से मोहबत की बिना है शायद ,
धरकने तेज़ हों दिलकी तो महसूस हुआ ,
उसने दिलको की पैघाम दिया है शायद ,
क्या गिला उसकी जफौं का करौं महफिल में ,
नारवा उसकी मोहबत में राव है शायद ,
में रिवायत से बगावत तो नही कर सकती ,
बस मेरी फिकर का अंदाज़ नया है शायद .......
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